Madhu varma

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लेखनी कविता - दीपक चितेरा -महादेवी वर्मा

दीपक चितेरा -महादेवी वर्मा 


सजल है कितना सवेरा

 गहन तम में जो कथा इसकी न भूला
 अश्रु उस नभ के, चढ़ा शिर फूल फूला
 झूम-झुक-झुक कह रहा हर श्वास तेरा

 राख से अंगार तारे झर चले हैं
 धूप बंदी रंग के निर्झर खुले हैं
 खोलता है पंख रूपों में अंधेरा

 कल्पना निज देखकर साकार होते
 और उसमें प्राण का संचार होते
 सो गया रख तूलिका दीपक चितेरा

 अलस पलकों से पता अपना मिटाकर
 मृदुल तिनकों में व्यथा अपनी छिपाकर
 नयन छोड़े स्वप्न ने खग ने बसेरा

 ले उषा ने किरण अक्षत हास रोली
 रात अंकों से पराजय राख धो ली
 राग ने फिर साँस का संसार घेरा 


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